छत्रपति शिवाजी में अदम्य साहस निर्भीकता, प्रचंड मनोबल, पराक्रम, दूरदृष्टि के गुण विद्यमान रहे, इन्हीं दुर्लभ गुणों और पक्के इरादे के कारण उन्होंने 19 वर्षों तक अपने प्रबलतम प्रतिद्वंदी को कूटनीति से तथा शक्ति का प्रयोग कर, उसके दक्षिण भारत में पांव टिकने नहीं दिया, शक्तिशाली सम्राट के दांत खट्टे करते रहे, वह सभी धर्मों का सम्मान करते थे, तथा महिलाओं की चाहे वह किसी धर्म या वर्ग की थीं, व पराजित प्रतिद्वंदी की भी महिलाओं का आदर करते हुए माता, बहन, पुत्री के समान मानते थे, वह मानवतावादी, धर्मनिरपेक्ष महापुरुष थे, उन्होंने विजित सेना के किसी भी सैनिक का कभी अपमान नहीं किया, तथा धर्मस्थल, धर्मग्रन्थ चाहे वह किसी धर्म का हो, तथा धर्माचार्यों का सम्मान किया, अपमानित या हेय दृष्टि से नहीं देखा, उनका उद्देश्य राज्य-सत्ता प्राप्त करना था, उसके लिए वह जीवन पर्यंत घोर संघर्ष करते हुए अपार कष्ट झेलते हुए लक्ष्य को प्राप्त किया, और छत्रपति शिवाजी के नाम से लोक में प्रसिद्ध हुए।
शिवाजी के पिता शाह जी जब अहमदनगर से पलायन कर गये तो उनकी माता जीजाबाई पीछे छूट गयी, उन्होंने शिवनेर दुर्ग में शरण ले, 19 फरवरी 1627 में शिवाजी को जन्म दिया, धर्म परायण, व्यवहार कुशल जीजाबाई ने शांतिपूर्वक पिता शाह जी का सानिध्य न होने के कारण भी अपने पुत्र को पिता की कमी न महसूस होते प्यार से पालन-पोषण किया, तथा उन्हें नीतिशास्त्रों, धर्मग्रंथों, देश भक्तों और बहादुरों के किस्से सुना प्रखर और पराक्रमी बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई| उन्होंने मुगलों के भय से 6 वर्ष तक लुक छिप कर बिताये, अंतत: वह मुगलों के हाथ आ गयीं लेकिन उनके विश्वस्त स्वामी भक्त सेवक शिवा को तीन वर्ष तक पहाड़ी क्षेत्र में छिपाते रहे, मुगलों को उनकी भनक भी नहीं लगी, इस घटना ने शिवा के मन में मुगलों के प्रति नफ़रत, द्वेष और घृणा की भावना भर दी, तथा मावले लोगों के साथ जंगलों में भटकते हुए अपार कष्ट सहते हुए शिवाजी के मन में विद्रोह की ज्वाला प्रज्ज्वलित होने लगी, उनका सारा जीवन मावलों के साथ जो मुसलमान थे भारत के, अरब के नहीं, उनके साथ बीता था।
उनकी शिक्षा, दीक्षा विद्वान ब्राह्मण दादा कोंड देव के संरक्षण में हुई, उन्हें युद्ध कौशल में निपुण बनाने की शिक्षा के साथ नीतिशास्त्र, धर्म और संस्कृति, राजनीति, कूटनीति की भी शिक्षा दे ज्ञानी और पराक्रमी तथा निर्भीकता पूर्वक अपने लक्ष्य को प्राप्त करने, योग्य बनाने में दादा ने कोई कसर नहीं छोड़ी, उसी का परिणाम रहा कि शिवाजी ने अपने जीवन में कभी हार नहीं मानी, जहाँ आवश्यकता बल प्रयोग से अपने उद्देश्य में सफल होने की वहां गोरिल्ला युद्ध कर और जहाँ संधि से काम चलता वहां संधि कर उन्होंने अपने साम्राज्य को मजबूत बनाया, धन के अभाव को दूर करने के लिए उन्होंने बड़े सेठ, साहूकारों, पूंजीपतियों को लूटा, लेकिन किसानों, मजदूरों, महिलाओं और बच्चों को कभी कष्ट नहीं पहुँचाया, तथा कभी गावों को नहीं उजाडा, वह अपने उद्देश्य में सफल होने के लिए कभी किसान, कभी भिखारी का रूप धारण कर पूरे नगर के बारे में तथा नगर वासियों की मानसिकता का ज्ञानार्जन कर रणनीति बनाते थे।
शिवाजी के जीवन में सूरत की लूट का बड़ा महत्व है, वहां से उन्हें अपार धन की प्राप्ति हुई, और बहुत से किले जीतने में सफल हुए, औरंगजेब को जब शिवाजी की ताकत का पता चला तो वह आग बबूला हुआ, और उन्हें पहाड़ी चूहा कहकर संबोधित करता था, लेकिन शिवाजी ने कभी हार नहीं मानी, और दक्षिण भारत में सर्वशक्तिमान बन अपने को स्थापित कर लिया, और उस समय की पाखंडी ताकतों, पेशवों ने शिवाजी को छत्रपति शिवाजी की उपाधि देने में वर्णव्यवस्था का राग अलाप राज्याभिषेक के मार्ग को अवरुद्ध कर दिया, लेकिन वाराणसी के गंगा भट्ट नामक पुरोहित ने स्वर्ण मुद्रा रिश्वत लेकर शिवाजी का तिलक पैर के अंगूठे से किया, जो नितान्त ही निंदनीय है, शिवाजी जैसे बहादुर को इसका विरोध करना चाहिए था, लेकिन अन्धविश्वास और रुढ़िवाद, धर्मान्धता में जकडे समाज के सामने और पाप के प्रायश्चित के डर से शिवाजी ने उनका विरोध नहीं किया, और 6 जून 1674 को उन्हें छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम से अलंकृत किया गया, इसी बीच जीजाबाई का देहांत हो गया, शिवाजी को अपार कष्ट हुआ, और वह भी पूरे जीवन संघर्षरत रहे, उनका भी स्वास्थ्य बिगड़ने लगा, 4 अप्रैल 1680 को उन्होंने अंतिम साँस ली, उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें स्मरण करते हुए देश गौरान्वित होता है, जो अभाव में कष्ट झेलते हुए अपने कौशल से छत्रपति शिवाजी महाराज बने, हमें उनके जीवन से प्रेरणा ले, निर्भीकता पूर्वक अन्याय, शोषण का विरोध करना चाहिए, शिवाजी के निधन पर उनके प्रबल प्रतिद्वंदी औरंजेब ने भी कहा कि “वे महान थे, वह एक मात्र महारथी थे जिन्होंने अपने पुरुषार्थ से नये राज्य की नीव डाली, हमारी सेनाएं 19 वर्ष से उनके साथ संघर्ष करती रहीं, लेकिन उन्होंने अपने राज्य का विस्तार ही किया”| यह दर्शाता है कि छत्रपति शिवाजी का लोहा उनके विरोधी भी मानते थे।
लेखक :
राम दुलार यादव
संस्थापक/अध्यक्ष
लोक शिक्षण अभियान ट्रस्ट
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