अक्षय वट को तीर्थराज प्रयागराज के रक्षक श्रीहरि विष्णु के वेणी माधव का साक्षात स्वरूप माना जाता हैः महाराजश्री
प्रयागराज। श्री दूधेश्वर मंदिर के पीठाधीश्वर व जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने बुधवार को संतों के साथ तीर्थराज प्रयाग के पावन संगम तट पर किले के अंदर अनादिकाल से विराजमान अक्षयवट का दर्शन-पूजन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा बनवाए कॉरिडोर की सभी ने सराहना की। श्री दूधेश्वर मंदिर के पीठाधीश्वर व जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज व सभी संतों का कर्नल मनी सिंह कमांडेंट ओडी फोर्ट, कैप्टन नीरज व कैप्टन शिप्रा ने स्वागत किया और अक्षयवट का दर्शन कराया और उसका चित्र भेंट किया। सभी ने सृष्टिकूप का जल भी ग्रहण किया। सामवेद कंे आचार्य रोहित त्रिपाठी ने पूजा-अर्चना व पाठ कराया। महाराजश्री ने कहा कि अक्षयवट का दर्शन-पूजन कर बहुत ही आनंद आया। वहां पर भगवान के अक्षयवट के रूप में विराजमान होने का अनुभव प्राप्त हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा बनवाए कॉरिडोर से अक्षयवट व आसपास का क्षेत्र और भी रमणीय हो गया है। श्रद्धालुओं के लिए अब दर्शन पूजन करना सहज व सुविधाजनक हो गया है।
श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने कहा कि प्रयागराज का अक्षयवट समुद्र मंथन के 14 रत्नों में से एक है। इस वृक्ष में ब्रह्मा.विष्णु और महेश निवास करते हैं। अक्षय वट को तीर्थराज प्रयागराज के रक्षक श्रीहरि विष्णु के वेणी माधव का साक्षात स्वरूप माना जाता है। इसे अक्षय वट इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह अजर-’अमर माना गया है और इसका अस्तित्व सृष्टि के आरंभ से ही है। अक्षय का अर्थ होता है जिसका कभी क्षय न हो, जिसे कभी नष्ट न किया जा सके। इसीलिए इस वृक्ष को अक्षय वट कहते हैं। इस वृक्ष को माता सीता ने आशीर्वाद दिया था कि प्रलय काल में जब धरती जलमग्न हो जाएगी और सब कुछ नष्ट हो जाएगा तब भी अक्षयवट हरा.भरा रहेगा। एक मान्यता और भी है कि बालरूप में श्रीकृष्ण इसी वट वृक्ष पर विराजमान हुए थे। बाल मुकुंद रूप धारण करके श्रीहरि भी इसके पत्ते पर शयन करते हैं। पद्म पुराण में अक्षयवट को तीर्थराज प्रयाग का छत्र कहा गया है। महंत मुकेशानंद गिरि महाराज, महंत किशन भारती महाराज, कालूराम, साध्वी विष्णु प्रिया गिरि महाराज, उज्जैन के आचार्य सत्यम आदि ने भी महाराजश्री के साथ अक्षयवट का दर्शन किया।
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