बुधवार, 15 जनवरी 2025

हम जमीन पर युद्ध जीते है पर मेज पर हारे हैं - कर्नल तेजेन्द्र पाल त्यागी

 

मुकेश गुप्ता

  गाजियाबाद।  बुधवार को महानगर के मॉडल टाउन ईस्ट स्थित राष्ट्रीय सैनिक संस्थान के मुख्यालय में 76वां आर्मी डे मनाया गया। 1949 में आज ही के दिन जनरल करियप्पा ने ब्रिटिश जनरल बुचर से कमांडर इन चीफ का पद संभाला था।  इस अवसर पर कर्नल तेजेन्द्र पाल त्यागी ने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री को देश चलाने का अनुभव नहीं था। लेकिन उन्होने भारतीय जनरल को नियुक्त न करने के लिए तर्क दिया कि उनके पास अनुभव नही है। नतीजा यह हुआ कि पाकिस्तान के साथ कश्मीर के ऊपर जो पहला युद्ध लड़ा गया उसमे अंग्रेज़ो का जनरल लोकहार्ट भारत में सेनापति था और अंग्रेज़ो का दूसरा जनरल डगलस पाकिस्तान का सेनापति था। जनरल लोकहार्ट का झुकाव पाकिस्तान की तरफ था। तमाम सबूत मिलते है कि भारत में तैनात जनरल लोकहार्ट को कबाइली के भेष में पाकिस्तान के फौजियो  के भारत मे घुसने की  सम्पूर्ण जानकारी थी जो सरदार पटेल से छिपाई गई। अक्टूबर 1948 में तत्कालीन प्रधानमंत्री माउंट बेटन के ब्रिटेन में विश्राम स्थल कैंपशायर मे 4 दिन आराम करने के लिए गए। माउंट बेटन इंग्लैंड के अन्य कामों में व्यस्त होने के कारण बाहर चले गए और भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री के साथ अपनी पत्नी ऐडविना को  छोड़ दिया  जिन्होने उनपर युद्ध विराम करने का  दबाव बनाया। इसकी गवाही मेजर जनरल गुलवन्त सिंह ने दी थी। मेजर जनरल गुलवन्त सिंह को आगे बढ़ने के लिए मना कर दिया गया था। यानि जमीन पर फौज गिलगिट बाल्टिस्तान को वापस लेने के लिए तैयार भी थी और सक्षम भी थी लेकिन युद्ध विराम कर दिया गया और हम मेज पर युद्ध हार गए।

1962 मे बिना तैयारी , बिना साजो सामान, बिना पर्सनल किट, फौज को हाई ऐल्टीट्यूड पर चाइना से लड़ने के लिए भेज दिया गया। यह हार सरकार की थी, फौज की नही। लद्दाख के रिचांगला में मेजर शैतान सिंह की कंपनी के 119 सिपाहियो ने चाइना के 1300 सिपाहियो को मारा था और ऐयर बेस पर चाइना का कब्जा नही होने दिया था। यहाँ भी हम मेज पर युद्ध हार गए। 

    1965 मे युद्ध जीतने के बाद भी हाजी पीर पास को वापस कर दिया गया।

     ऐसे ही 1971 मे 93 हजार पाकिस्तानी सिपाहियो को युद्ध बंदी बनाने के बाद भी न कश्मीर का मुद्दा सुलझा और न ही भविष्य मे पाकिस्तान द्वारा आक्रमण न करने के वादे पर हस्ताक्षर लिए गए और पाकिस्तान के मुक़ाबले 4 गुना ज्यादा जीता हुआ क्षेत्र भी वापस कर दिया गया। 1999 में भी अत्यंत मुश्किल कारगिल युद्ध को जीतने के बाद भी पाकिस्तान के फौजी सिपाहियो और आतंकियो को बचकर निकलने के लिए एक सेफ कॉरीडोर दिलवा दिया गया।

     कारगिल से लेकर आज तक कोई युद्ध नही हुआ लेकिन कारगिल के मुक़ाबले 100 गुना अधिक सिपाही शहादत दे चुके है। सिपाही के शौर्य मे कमी नही आई है बल्कि नीतियो मे बदलाव की आवश्यकता है। 

    आर्मी डे फौज के साहस और बलिदान का गुणगान करने के लिए मनाया जाता है। साहस अगर बाजार मे बिकता होता तो हर नेता इसे खरीद लेता। आर्मी डे मनाने का दूसरा कारण है सिपाही के बलिदान की सराहना करना है।  नेता अगर चुनाव हार जाये तो दोबारा लड़ सकता है परंतु सिपाही अपनी जान का बलिदान केवल एक बार ही दे सकता है इसलिए इसे सर्वोच्च बलिदान कहते है। आज आर्मी डे पर हम केवल इतना चाहते है की कम से कम फौज के मामले पर पूरा देश एक आवाज मे ‘’ जय हिन्द ‘’ बोले। फौज के इस अदम्य साहस के बावजूद भी देश मे लगने वाले नारे कि तवांग मे फौज पिटकर आ गई, पाकिस्तान ने चूड़िया नही पहन रखी, आतंकियो और भारतीय सेना मे गठ जोड़ है बर्दाश्त करने लायक नहीं है। इस मौके पर राष्ट्रीय सैनिक संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष कर्नल तेजेन्द्र पाल त्यागी, ज्ञान सिंह, गणेश दत्त, राजेन्द्र प्रसाद त्रिपाठी, सुरेन्द्र चन्द शर्मा ,  पुष्कर सिंह बिष्ट  आदि मौजूद रहे।

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