गुरुवार, 17 अक्तूबर 2024

परमात्मा को मन में बसाकर भक्ति युक्त जीवन जीया जा सकता है--सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज

 


 


मुकेश गुप्ता

गाजियाबाद की धरा से प्रसारित हुआ मानवता का दिव्य सत्य संदेश

गाजियाबाद । ‘परमात्मा को जानकर जब हमारी आत्मा इस परमपिता परमात्मा से इकमिक हो जाती है तब संसार में हो रही किसी भी प्रकार की गतिविधि अथवा व्यवहार से भक्त प्रभावित नहीं होता अपितु वह हर पल में केवल शुकराने का ही भाव प्रकट करता है। फिर संत वाली अवस्था आ जाने पर जीवन का हर पल आनंदित एवं मन स्थिर ही रहता है। इसलिए इस परमपिता को जानकर इसे मन में बसाते हुए हर भक्त अपने जीवन का प्रत्येक पल भक्तिमयी बना सकता है।’ उक्त उदगार सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज ने बुधवार को  गाजियाबाद शहर के हरसाव पुलिस लाइन के एन डी आर एफ रोड स्थित सी पी डब्लू डी विशाल मैदान में आयोजित निरंकारी संत समागम में सम्मिलित हुए भक्तों एवं श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किये।

ज्ञातव्य हो कि सतगुरु माता  का शुभ-आगमन लगभग 5 वर्षों के उपरांत गाजियाबाद की धरती पर हुआ। लंबे अन्तराल के उपरांत सतगुरु का पावन दर्शन पाकर सभी भक्तों को सुकून की अनुभूति हुई। इस पावन संत समागम में गाजियाबाद के स्थानीय भक्तों, नगरवासियों, गणमान्य सज्जनों के अतिरिक्त दिल्ली-एन सी आर सहित आसपास के जिलों मेरठ, बागपत, हापुड़ इत्यादि से श्रद्धालुगण उत्साहपूर्वक सम्मिलित हुए और सत्संग का भरपूर आनंद प्राप्त किया।

सतगुरु माता ने भक्त की अवस्था का जिक्र करते हुए कहा कि भक्त सदैव सुकून एवं आनंद मे रहते हैं। भक्तों के जीवन में भक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई बात नहीं होती। जिस पल से इस परमात्मा को जानकर इसके निरंतर एहसास में जीना आरम्भ करत देते हैं वही से वास्तविक भक्ति का आरम्भ हो जाता है। भक्ति तो निःस्वार्थ प्रेम का नाम है जिसमें दिखावे का कोई स्थान नहीं केवल शुकराने का ही भाव मन में रहता है और इसी सकारात्मक विचार से भक्त अपना जीवन जीते चला जाता है।

सतगुरु माता ने आगे फरमाया कि हमें जो यह स्वासें मिली है इनका हम सदुपयोग करे चाहे हम आयु की किसी भी अवस्था में हो भक्तिमार्ग पर चलकर जीवन को सुखी बना सकते है। एक शायर के शब्दों का जिक्र करते हुए माता जी कहा कि-दो जहान के फर्क केवल दो स्वासों का ही है। आई तो यहां, रुक गई तो वहां इस प्रकार से यह निश्चित नहीं है कि किस पल में, वह कौन सी स्वांस है, जो आखिरी हो सकती है। अतः अपने जीवन का सदुपयोग करते हुए उसे प्रेम, सुकून एवं भक्ति से युक्त होकर जीये और सभी के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बने।

अन्त में स्थानीय संयोजक सतीश गांधी ने सतगुरु माता जी एवं निरंकारी राजपिता जी के दिव्य आगमन हेतु हृदय से आभार व्यक्त किया। इसके अतिरिक्त सभी संतों एवं प्रशासन के सकारात्मक सहयोग हेतु भी धन्यवाद दिया।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें