मंगलवार, 8 अक्तूबर 2024

महाकुंभ मेला ही नहीं बल्कि विश्व भर के लोगों की आस्था का प्रतीक हैः श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज

 

                         मुकेश गुप्ता

विश्व के सबसे बड़े धार्मिक मेले की प्रयागराज में युद्धस्तर पर तैयारियां चल रही हैं

महाकुंभ मेले में तीन मुख्य व तीन शाही स्नान होंगे

प्रयागराजः विश्व के सबसे बड़े धार्मिक मेले महाकुम्भ का आयोजन नववर्ष 2025 प्रयागराज में होगा। महाकुम्भ को लेकर तैयारियां युद्धस्तर पर चल रही हैं। 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार 6 अक्टूबर को प्रयागराज में महाकुंभ 2025 के लोगो का अनावरण भी कर दिया। श्री दूधेश्वर नाथ मंदिर के पीठाधीश्वर, श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता, दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने बताया कि  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा लोगो का अनावरण करने के साथ ही महाकुम्भ पर्व का आगाज भी हो गया है। महाकुंभ भारतीय संस्कृति का ऐसा महापर्व है, जो पूरे विश्व को भारतीय संस्कृति में रंग देता है। महाकुंभ में आध्यात्म व धर्म की गंगा में डूबकी लगाने के लिए विश्व भर से लोग आते हैं। महाकुंभ मेला ही नहीं बल्कि विश्व भर के लोगों की आस्था का प्रतीक है। महाकुम्भ मेले में कई मुख्य स्नान व शाही स्नान होते हैं। महाराजश्री ने बताया कि महाकुंभ 2025 के मुख्य स्नान सोमवार 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा, बुधवार 12 फरवरी को माघी पूर्णिमा, बुधवार 26 फरवरी को महाशिवरात्रि का मुख्य स्नान होगा। वहीं मंगलवार 14 जनवरी को मकर संक्रांति, बुधवार 29 जनवरी को मौनी अमावस्या व सोमवार 3 फरवरी को बसंत पंचमी का शाही स्नान होगा। शाही स्नान का मतलब है कि संगम में साधुओं और भक्तों का भव्य परेड से पहले किया जाने वाला अनुष्ठानिक स्नान। ऐसा माना जाता है कि इससे पिछले सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष या जन्म.मृत्यु के चक्र से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। माना जाता है कि शुभ मुहूर्त में गंगा में स्नान करने से जल अमृत बन जाता है, जिससे अमरता प्राप्त होती है। साधु-संत के बाद आम जनता त्रिवेणी में स्नान करने पहुंचती है। श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने बताया कि साधु-संतों का मेला 4 व 5 फरवरी को समाप्त हो जाएगा, वहीं आम जनता के लिए मेला महाशिवरात्रि तक चलेगा। कुम्भ महोत्सव पौष मास की पूर्णिमा से प्रारंभ होता है और प्रत्येक चौथे वर्ष नासिक, इलाहाबाद, उज्जैन और हरिद्वार में बारी-बारी से मनाया जाता है। प्रयागराज कुम्भ अन्य कुम्भों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रकाश की ओर ले जाता है। यह ऐसा स्थान है जहां बुद्धिमत्ता का प्रतीक सूर्य का उदय होता है। ऐसी मान्यता है कि ब्रह्माण्ड की रचना से पहले ब्रम्हाजी ने यहीं अश्वमेघ यज्ञ किया था। दश्वमेघ घाट और ब्रम्हेश्वर मंदिर इस यज्ञ के प्रतीक स्वरुप अभी भी मौजूद है। इसी कारण प्रयागराज कुंभ का विशेष महत्व है और कुंभ व प्रयागराज को एक-दूसरे का पर्यायवाची भी माना जाता है।

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