सिद्ध संत नारायण गिरि महाराज ने विक्रमी संवत 1870 में श्री दूधेश्वर नाथ मंदिर में जीवित समाधि ले ली थी
गाजियाबादःसिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर में पितृ पक्ष के चौथे दिन शुक्रवार द्वितीया तिथि के श्राद्ध पर मंदिर में विराजमान गुरू मूर्तियों की विशेष पूजा-अर्चना की गई। सर्वप्रथम श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर, श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता, दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने सभी गुरू मूर्तियों की पूजा-अर्चना की व उन्हें भोग लगाया। इसके बाद भक्तों ने गुरू मूर्तियों, भगवान दूधेश्वर समेत सभी देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की। श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने भक्तों को परम सिद्ध संत नारायण गिरि महाराज के बारे में बताया जिन्होंने 211 वर्ष पूर्व विक्रमी संवत 1870 में जीवित समाधि ली थी। आज भी उनके चमत्कारों की कथा भक्त सुनाते हैं। परम सिद्ध संत नारायण गिरि महाराज के मुख से सदैव पंचाक्षरी मंत्र नमः शिवाय ही निकलता था। उनके अंदर सभी के लिए इतना प्यार था कि बहुत से भक्त तो उन्हें बाबा मां भी कहते थे।
उन्हें जडी-बूटियों की बहुत पहचान थी और रोजाना जंगल जाते तो साथ में वनस्पति जरूर लेकर आते। एक बार एक भक्त को मंदिर के बाहर जहरीले कीडे ने काट लिया तो वह भयानक दर्द से तडफने लगा। बाबा उसके पास गए और उसे देखकर धूने से कुछ पत्ते हथेली से रगडकर भक्त के मुंह में डाल दिए और खुद नमः शिवाय का जाप करते रहे और उसके माथे पर हाथ फेरते रहे। कुछ देर बाद भक्त ने आंख खोल दी। उसकी पीडा भी शांत हो चुकी थी। बाबा ने भक्त पर दिव्य कुएं का जल मंगाकर छिडका और उससे कहा कि बच्चा खडा होकर आरती कर। आरती की समाप्ति के बाद वह पूरी तरह से स्वस्थ था और ऐसा लगा ही नहीं कि उसे किसी जहरीले कीडे ने काटा था। बाबा के कहने पर वह भक्त जीवन पर्यंत भगवान दूधेश्वर का धन्यवाद करने के लिए आता रहा। ऐसे ही एक बार एक गरीब भक्त नंदराम मंदिर में आया और वह कभी दूधेश्वर भगवान के दर्शन करता तो कभी बाबा के चरण स्पर्श करता। ऐसे ही तीन हो गए तो बाबा ने उसे अपने पास बुलाया तो वह रोते हुए कहने लगा कि उसकी पत्नी मर चुकी है। एक झौंपडी में 15 वर्ष के बेटे के साथ रहता हूं। उसके सिवा उसका कोई सहारा नहीं है और वह दो माह से बीमार है। उसके पास तो इलाज तक को पैसे नहीं हैै। उसे भगवान दूधेश्वर व आप पर पूरा भरोसा है। इसी कारण उसने प्रण लिया है कि जब तक उसका बेटा खुद मंदिर नहीं आएगा, तब तक वह घर नहीं जाएगा। बाबा ने कहा कि तेरा भरोसा ना टूटे भगवान दूधेश्वर तेरा भला करें। भक्त तीन दिन तक मंदिर में ऐसे ही बैठा रहा। चौथे दिन वह यह देखकर हैरान हो गया कि उसका बेटा मंदिर आ रहा था और ऐसा नहीं लग रहा था कि वह बीमार था। भक्त का बेटा बाबा को देखकर हैरान रह गया क्योंकि रात को यही बाबा झौंपडी में आए थे और उनसे निगाह मिलते ही उसके अंदर ताकत का संचार हुआ था। बाबा के आदेश पर ही वह सुबह होते ही मंदिर चला आया था। इस चमत्कार की कथा आज भी घरों में सुनाई जाती है। नंदराम व उसका बेटा नंदग्राम इसके बाद सारी उम्र चार मील पैदल चलकर मंदिर आते रहे। बाबा ने जब समाधि ली तो नंदराम व उसका बेटा उस समय मंदिर में ही थे।
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