मंगलवार, 23 जुलाई 2024

श्रीमद्भागवत कथा के श्रवण से मनुष्य को मिलता है बैकुंठ धाम - पं संजीव शर्मा

 

मुकेश गुप्ता

श्रीकृष्ण और सुदामा की झांकी भी प्रस्तुत की

गाजियाबाद। राकेश मार्ग स्थित गुलमोहर एनक्लेव सोसायटी के श्री शिव बालाजी धाम मंदिर में चल रही भागवत कथा के सातवें दिन कथा वाचक पं. संजीव शर्मा ने जरासंध उद्धार, सुदामा मिलन, गोविंद विवाह, परीक्षित उद्धार, श्रीकृष्ण के पुत्रों की भूलों का परिणाम आदि प्रसंगों का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि यदि मनुष्य श्री हरि के चरणों में ध्यान लगाकर श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण करता है तो उसे निश्चित ही बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। भागवत कथा श्रवण के साथ-साथ मनुष्य अपने आचरण में भी उसे उतारने का प्रयास करें तो मनुष्य एक संयमित जीवन जी सकता है।। सातवें दिन की कथा में पंडित संजीव शर्मा ने श्री कृष्ण और सुदामा की अनूठी मित्रता का प्रसंग सुनाया। उन्होंने बताया कि बचपन में ऋषि संदीपनी के आश्रम में पढ़ाई के दौरान श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता हुई थी। सुदामा एक गरीब ब्राह्मण के पुत्र थे। बड़े होकर भी सुदामा अपनी दरिद्रता के कारण जब अत्यंत कष्ट में जीवन बिता रहे थे तब उनकी पत्नी ने उन्हें अपने मित्र श्री कृष्ण से भेंट करने के लिए भेजा। जहां श्रीकृष्ण ने उनका ह्रदय से लगाकर स्वागत किया और अपने महल में लाकर अपने मित्र के चरण पखारे। कथा के दौरान ही श्रीकृष्ण और सुदामा की अत्यंत मनमोहक झांकी भी प्रस्तुत की गई।

श्री कृष्ण ने तंदुल खाकर अपने मित्र की दरिद्रता दूर की।  उन्होंने बताया कि माता रुक्मणी ने मन ही मन श्री कृष्ण को अपने पति के रूप में वरण करने की इच्छा जाहिर की थी और श्रीकृष्ण ने उनका हरण कर रुक्मणी से विवाह किया था। जरासन्ध के वध का प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने बताया कि श्री कृष्ण से कंस के वध का बदला लेने के लिए जरासन्ध ने मथुरा पर 17 बार मथुरा पर आक्रमण किया लेकिन श्री कृष्णा ने हर बार उसे परास्त कर जीवित छोड़ दिया क्योंकि श्री कृष्ण के हाथ जरासन्ध का वध नहीं लिखा था। महाभारत के दौरान 13 दिन तक भीम और जरासंध का मल्लयुद्ध चला जिसमें भीम ने कई बार जरासंध के दो टुकड़े किये लेकिन वह फिर जिंदा हो जाता क्योंकि जरासंध का जन्म भी दो टुकड़ों में हुआ था जिसे जरा नाम की रक्षा ने जोड़कर जिंदा किया था। बाद में श्री कृष्ण द्वारा एक तिनके को दो टुकड़ों में विभाजित कर विपरीत दिशा में फेंकने का इशारा समझकर भीम ने जरासंध को बीच में से फाड़ कर उसका शरीर दो विपरीत दिशा में फेंककर जरासंध का वध किया।

   परीक्षित उद्धार का प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने कहा कि जिस समय राजा परीक्षित को ऋषि के शापवश तक्षक सर्प ने डसना था तो राजा परीक्षित के उद्धार के लिए श्रीमद् भागवत (सुधा सागर) की सात दिन की कथा करनी थी। पृथ्वी के सर्व ऋषियों तथा पंडितों से श्रीमद् भागवत की कथा परीक्षित को सुनाने का आग्रह किया गया। पृथ्वी के सर्व पंडितों ने श्रीमद् भागवत की कथा सुनाने से मना कर दिया। यहां तक कि जिन वेदव्यास जी ने श्रीमद्भागवत को लिखा था, उन्होंने भी कथा सुनाने से इंकार कर दिया। सब ऋषियों ने बताया कि स्वर्ग से ऋषि शुकदेव को इस कार्य के लिए बुलाया जाए। वे कथा सुनाने के अधिकारी हैं। राजा परीक्षित के लिए स्वर्ग से सुखदेव ऋषि को बुलाया गया। तब उन्होंने परीक्षित को श्रीमद्भागवत कथा सुनाई और उनका उद्धार किया। श्रीकृष्ण के पुत्रों के भूल के कारण ही यदुवंश का विनाश हुआ। कथा वाचक पं संजीव शर्मा ने कहा कि एक दिन द्वारिका में महर्षि विश्वामित्र, कण्व और देवर्षि नारद पधारे। कृष्ण के पुत्रों ने उनका अपमान किया तो उन्होंने उनके ही हाथों पूरे कुल के नाश का श्राप दिया जिसके कारण कृष्ण का पूरा वंश आपस मे लड़कर अपना विनाश कर बैठा।

 इसी के साथ भागवत कथा सम्पूर्ण हो गई। कथा के सम्पूर्ण  विश्राम के साथ ही आरती की गई और प्रसाद वितरण किया गया। आयोजकों ने बताया कि बुधवार की सुबह 8 बजे हवन का आयोजन किया जाएगा और प्रसाद वितरण किया जाएगा।

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