गुरू दीक्षा लेने के लिए कई राज्यों के भक्त मंदिर पहुंचे
महाराजश्री बोले, गुरु के बिना किया गया नाम, जाप, भक्ति व दान, धर्म सभी व्यर्थ है
गाजियाबादःगुरू पूर्णिमा का पर्व रविवार को सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर में धूमधाम व श्रद्धाभाव से मनाया गया। मंदिर में श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर, श्रीपंच दशनाम जूना अखाडा के अंतर्राष्ट्रीय प्रवक्ताए दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरी महाराज से गुरू दीक्षा लेने के लिए दिन भर भक्तों की भीड़ लगी रही। महाराजश्री से गुरू दीक्षा लेने के लिए देश के कई राज्यों से भक्त मंदिर पहंुचे। रविवार को प्रातः 4 बजे भगवान दूधेश्वर व मंदिर में विराजमान सभी देवी-देवताओं, सभी गुरू मूर्तियों व सिद्ध संतों की समाधियों, भगवान दत्तात्रेय की पूजा-अर्चना हुई।
उसके बाद व्यास गददी व श्रीमहंत नारायण गिरी महाराज की पूजा-अर्चना हुई, जिसके बाद महाराजश्री से गुरू मंत्र लेने का सिलसिला शुरू हो गया। भक्तों ने उनका पूजन-अर्चन किया और उनका आशीर्वाद लेकर गुरू दीक्षा ली। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात आदि राज्यों से आए भक्तों ने महाराजश्री से गुरू दीक्षा ली। मंदिर परिसर व आसपास का क्षेत्र महाराजश्री के जयकारों से दिन भर गूंजता रहा। इस अवसर पर श्रीमहंत नारायण गिरी महाराज ने कहा कि वह भक्त बहुत ही भाग्यशाली होता है, जिसके जीवन में सच्चे गुरू का प्रवेश हो जाता है। गुरू ही उसका सही मार्गदर्शन करता है और उसे ऐसा मार्ग दिखाता है, जिस पर चलते हुए व्यक्ति अपने जीवन को सफल व सुखमय बनाता है व मोक्ष प्राप्त करता है। बिना गुरु के हमें ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती है। गुरु के बिना किया गया नाम, जाप, भक्ति व दान, धर्म सभी व्यर्थ है। गुरू दो शब्दों से मिलकर बना है। गुरू अर्थात् अंधकार व रु अर्थात प्रकाश। गुरु ही मनुष्य को जन्म मरण के रोग रूपी अंधकार से पूर्ण मोक्ष रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं। समाज में फैले अंधविश्वास, रूढ़िवादिता, पाखंडवाद और अंधभक्ति की गहरी नींद से जगाकर वास्तविक और प्रमाणित भक्ति प्रदान करते हैं। महाराजश्री ने कहा कि आषाढ़ मास की पूर्णिमा को सनातन धर्म में गुरू पूर्णिमा के रूप में मानाया जाता है। इस भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। वेद व्यास को महाभारत का रचयिता और वेदों का संकलनकर्ता माना जाता है। आरंभ में वेद एक ही था। द्वापर युग में महर्षि कृष्ण द्वैपायन ने वेद का देव भाषा संस्कृत में चार भागों ऋग्वेद, यजुर्वेद,सामवेद और अथर्ववेद में लिपिबद्ध किया था। वेद का विभाजन करने के कारण महर्षि कृष्ण द्वैपायन को वेद का विभाजन करने वाला वेदव्यास कहा जाने लगा। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को ही प्रथम गुरु वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। इसी कारण गुरू पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
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