श्रीमहंत हरि गिरि महाराज के संरक्षण में तीनों मंदिर देश को पुनः विश्व गुरू बनाने के लिए प्रयासरत हैं
आनंदेश्वर महादेव मंदिर के श्रीमहंत हरि गिरि महाराज प्रमुख महंत व महंत महंत उमाशंकर भारती महाराज, श्रीमहंत प्रेम गिरी महाराज, महंत केदार पुरी महाराज व श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज महंत हैं
श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर के पीठाधीश्वर हैं
गाजियाबादः श्रावण मास में हर कोई भगवान शिव की भक्ति में लीन है। प्रमुख शिवालयों में शिवभक्तों का तांता लगा है। गाजियाबाद से कानपुर व लखनऊ तक तीन ऐसे सिद्धपीठ भगवान शिव के मंदिर हैं, जिन्होंने पूरे उत्तर प्रदेश को शिवमय कर रखा है। इन दिनों इन तीनों मंदिरों में पूजा-अर्चना करने के लिए देश भर से भक्त आ रहे हैं। ये तीन मंदिर आनंदेश्वर महादेव मंदिर कानपुर, मनकामेश्वर मंदिर लखनऊ व सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर गाजियाबाद हैं। तीनों मंदिर जूना अखाड़ा, जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक एवं अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्रीमहंत हरि गिरि महाराज के संरक्षण में संचालित हैं और धर्म-आध्यात्म व हिंदू सनातन धर्म की पताका पूरे विश्व में फहराने का कार्य कर रहे हैं।
आनंदेश्वर महादेव मंदिर कानपुर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। इस मंदिर में कर्ण ने भगवान शिव पूजा की थी। सिर्फ कर्ण को ही पता था कि यहां पर भगवान शिव का शिवलिंग है। कर्ण गंगा में स्नान करने के बाद गुपचुप तरीके से पूजा करते थे। इसके बाद अदृश्य हो जाते थे, मगर एक दिन एक गाय ने कर्ण को पूजा करते हुए देख लिया। गाय जैसे उस स्थान पर जाते ही गाय के थन से दूध निकलने लगा। ग्रामीणों ने शिवलिंग को गंगा जल और दूध से स्नान कराकर विधि-विधान के साथ गंगा किनारे उसको स्थापित किया। बदलते वक्त के साथ यह मंदिर भव्य बनता चला गया और आज बाबा आनंदेश्वर नाम से इस मंदिर की ख्याति देश-विदेश में है। भगवान शिव के भक्त इस मंदिर को भक्त छोटे काशी के नाम से भी पुकारते हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव यहां पर स्वयं निवास करते हैं। यहां पर आने वाले भक्तों के भगवान के दर्शन मात्र से सभी दुःख दर्द मिट जाते हैं। आनंदेश्वर महादेव मंदिर कानपुर के प्रमुख महंत श्रीमहंत नारायण गिरी महाराज हैं। वहीं चार महंत पूर्व सभापति महंत उमाशंकर भारती महाराज, वर्तमान सभापति श्रीमहंत प्रेम गिरी महाराज, महामंत्री महंत केदार पुरी महाराज व मंदिर के पीठाधीश्वर, श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता, दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज हैं।
लखनऊ का मनकामेश्वर मंदिर बहुत प्राचीन है और इसका इतिहास रामायण काल से जुड़ा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि माता सीता को वनवास छोड़ने के बाद लखनपुर के राजा लक्ष्मण ने यहीं रूककर भगवान शंकर की अराधना की थी। बाद में यही पर मनकामेश्वर मंदिर की स्थापना कर दी गई। राजा हिरण्यधनु ने अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के बाद मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर के शिखर पर सुसज्जित 23 स्वर्ण कलश मंदिर की शोभा को बढ़ाते हैं।
दक्षिण के शिव भक्तों व पूर्व के तारकेश्वर मंदिर के उपासक साहनियों ने मध्यकाल तक इस मंदिर के मूल स्वरूप को बनाए रखा था। वर्तमान में मंदिर का भव्य स्वरूप है, उसका निर्माण सेठ पूरन शाह ने कराया है।
सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर गाजियाबाद का इतिहास बहुत ही प्राचीन है। यहां पर रावण के पिता विश्वश्रवा व रावण ने घोर तपस्या की थी। रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यहां पर अपना सिर तक अर्पित कर दिया था। मंदिर में तीन फीट नीचे स्वयंभू यानि खुद प्रकट हुआ दिव्य शिवलिंग स्थापित है। मंदिर का कलयुग में प्राकट्य सोमवार कार्तिक शुक्ल, वैकुन्ठी चतुर्दशी संवत् 1511 वि तदनुसार 3 नवंबर 1454 ई० को हुआ था। पहले यहां टीला था, कैला गांव की गाय जब यहां घास चरने आती तो टीले पर अपने आप ही उनके थनों से दूध गिरने लगता था। इस पर टीले की खुदाई की गई तो शिवलिंग निकला और मंदिर का निर्माण कराया गया। गाय का दूध गिरने की वजह से ही मंदिर का नाम दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर हो गया। छत्रपति शिवाजी ने भी भगवान् दूधेश्वर की पूजा-अर्चना व अभिषेक किया था। उन्होंने मंदिर का जीर्णाेद्वार भी कराया था। छत्रपति शिवाजी के बाद धर्मपाल गर्ग ने अपने माता.पिता की याद में बने ट्रस्ट श्री आत्माराम नर्वदा देवी चेरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से मंदिर का जीर्णाेद्धार कराया है। मंदिर की बेहद मान्यता है और यहां वर्ष भर देश-विदेश के भक्तों का तांता लगा रहता है। काँवड़ यात्रा में लांखों कांवडिएं भगवान का जलाभिषेक करेंगे। वर्तमान में मंदिर के पीठाधीश्वर श्रीमहंत नारायण गिरी महाराज हैं। तीनों मंदिर जूना अखाड़ा, 13 मणिरिद्धिनाथी परम्परा व जूना अखाड़ा, जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक एवं अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्रीमहंत हरि गिरि महाराज के संरक्षण में भारतीय संस्कृति व भारत के प्राचीन गौरव को पुर्नस्स्थापित करने व भारत को पुनः विश्व गुरू बनाने के लिए अहम भूमिका निभा रहे हैं।
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