रविवार, 15 अक्तूबर 2023

हिन्दी भवन व लोक परिषद के आयोजनों पर क्या कहते हैं, गाजियाबाद निवासी प्रख्यात कवि-- नित्यानंद तुषार

 

मुकेश गुप्ता सत्ता बन्धु

कई मशहूर चेहरे हमसे कितना ख़ौफ़ खाते हैं

अगर मौजूद हों हम तो चमक धुल जाती है उनकी.--- --नित्यानन्द 'तुषार'

  मैं विगत 40 वर्षों से ग़ाज़ियाबाद में हूँ।देश भर के लगभग सभी बड़े पत्र पत्रिकाओं में मेरी रचनाएँ प्रकाशित होती रहीं हैं।मेरे नाम पर ,14 काव्य कृतियाँ प्रकाशित हैं ,जिसमें 7 मौलिक और 7 संपादित कृतियाँ हैं।।देश के अनेक शहरों में अच्छे पारिश्रमिक पर काव्य पाठ हेतु निमन्त्रण मिला,काव्यपाठ किया।अनेक बड़े टीवी चैनल्स और आकाशवाणी दिल्ली पर भी  काव्य पाठ किया जिनमें NDTV, SAB TV, DD1, शामिल हैं,लेकिन ग़ाज़ियाबाद लोक परिषद ने अथवा जो अब हिंदी भवन के मालिक बन बैठे हैं उन लोगों ने कभी भी कवि सम्मेलन ,मुशायरे में काव्यपाठ करने का निमंत्रण देना तो दूर सुनने का भी निमन्त्रण नहीं दिया। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि ग़ाज़ियाबाद में हम जैसे कवियों की किस हद तक उपेक्षा की जाती रही है।इसके पीछे कौन लोग हैं,जो इस तरह का कार्य करते रहे हैं?

आज तक मुँह नहीं खोला,मगर अब हालात  देखकर मुँह खुल ही गया।अपनी इन पंक्तियों के साथ अपनी बात समाप्त करता हूँ-

कई मशहूर चेहरे हमसे कितना ख़ौफ़ खाते हैं।अगर मौजूद हों हम तो चमक धुल जाती है उनकी..* --- --नित्यानन्द 'तुषार'

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