"पत्थर समझ के रास्ते से सब ने हटा दिया, तूने तराश कर मुझे हीरा बना दिया" : अलका मिश्रा
विशेष संवाददाता
गाजियाबाद। महफिल ए बारादरी कार्यक्रम के अध्यक्ष ओमप्रकाश यती ने देश के सियासी हालातों पर कटाक्ष करते हुए कहा "हमारे गांव को ढाढस बंधाने कौन आएगा, इलेक्शन बाद फिर चेहरा दिखाने कौन आएगा।" इंसान के हासिल और उसकी लालसा के द्वंद को नए सिरे से परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा "औरों के पास जो है वह हमें क्यों चाहिए, और इस तरह तो जिंदगी प्रतियोगिता बन जाएगी। जन सरोकारों से इसके तार जब जुड़ जाएंगे, सार्थक अपनी यह रचना धर्मिता हो जाएगी। सोच मत उस पर बहुत जो चीज बस में है नहीं, एक दिन वरना यह चिंता चिता बन जाएगी। आदतें अच्छी अगर हम डाल जाएंगे, एक दिन आदर्श जीवन संहिता बन जाएगी।" आस्था और पाखंड में अंतर करते हुए उन्होंने कहा "चढ़ावे में कमी की तो दंड पाओगे जरूर, माफ करते ही नहीं हैं आजकल के देवता। भीड़ इतनी थी कि दर्शन पास से संभव न था, तो दूर से ही देख आए हम उछल कर देवता।"
सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में आयोजित महफिल की मुख्य अतिथि अलका मिश्रा ने अपने शेर "पत्थर समझ के रास्ते से सब ने हटा दिया, तूने तराश कर मुझे हीरा बना दिया" पर भरपूर वाहवाही बटोरी। बारादरी की संस्थापिका डॉ. माला कपूर 'गौहर' ने अपने शेरों "आप अपनी मिसाल के रंग दे, चाहतों में कमाल के रंग दे। कोई बाकी न रहे महफिल में, हर तरफ देखभाल के रंग दे। दोस्त जो लड़खड़ाता मिल जाए, उसको 'गौहर' संभाल के रंग दे" से दाद बटोरी। कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. तारा गुप्ता की सरस्वती वंदना से हुआ। बारादरी के अध्यक्ष गोविंद गुलशन ने फरमाया "मंजर नहीं नजर में तो आंखों का क्या करें, सहरा में आ गए चिरागों का क्या करें। ताबीर ने हमेशा दिया है फरेब, आंखों में जो सजा लिए ख्वाब उनका क्या करें।" डॉ. रमा सिंह ने कहा "प्रेम हृदय की बात है यह ना हाथ बिकाय जो यह हाथ बिकाय तो प्रेम कहां रह जाए।''सुरेंद्र सिंघल ने अपने चिर परिचित अंदाज में कुछ यूं कहा "नहीं यह रूह भी काफी नहीं मोहब्बत में, बदन भी साथ में लाना था इसलिए आया। जल की देवी लकड़हारे संग रही खुश-खुश, यह किस्सा तुमको सुनाना था इसलिए आया। बगल में काम था आना था इसलिए आया, और आज तो यह बहाना था इसलिए आया। मैं जानता हूं बुलाया नहीं गया मुझको, विरोध दर्ज कराना था इसलिए आया।" मासूम गाजियाबादी ने कहा "अलग जब से हातिम हो गया है, मेरा चुप रहना लाजिम हो गया है। मुझे मासूम कहना पड़ रहा है जमाना इतना जालिम हो गया है।" असलम राशिद ने फरमाया "रफ्तार आंसुओं की रवानी से खींच लूं, मैं चाहता हूं दर्द की कहानी से खींच लूं। जिसकी वजह से बिछड़े थे सीता से रामजी, मैं उस हिरण को राम कहानी से खींच लूं।" डॉ. ईश्वर सिंह तेवतिया ने अपने मार्मिक गीत से सभी को भावविभोर कर दिया। कार्यक्रम का संचालन कीर्ति रतन ने किया।वागीश शर्मा, आलोक यात्री, सरवर हसन सरवर, अक्षयवरनाथ श्रीवास्तव, गुंजन अग्रवाल, भूपेंद्र रावत, संजीव शर्मा, प्रतिभा प्रीत, राजीव सिंघल, सुधीर त्यागी, रश्मि कुलश्रेष्ठ, सुभाष अखिल, सुभाष चंदर, अजय कुलश्रेष्ठ, अनिमेष शर्मा, उर्वशी अग्रवाल की रचनाएं भी सराही गईं। इस अवसर पर पं. सत्य नारायण शर्मा, प्रभात कुमार, देवव्रत चौधरी, वीरेंद्र सिंह राठौर, डॉ. महकार सिंह, प्रज्ञा मित्तल, रवि शंकर पांडे, संजय भदौरिया, दीपा गर्ग, अजय मित्तल, अंजलि, सौरभ कुमार, राष्ट्रवर्धन अरोड़ा, विनोद कुमार, संजीव अग्रवाल, अनिल चानना, ओंकार सिंह, शशिकांत भारद्वाज, राम प्रकाश गौड़, विनोद कुमार विनय, व मनोज सारस्वत सहित बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद थे।
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