महान शिक्षाविद, कानूनविद, भारत रत्न, ओजस्वी वक्ता, प्रखर आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक चिन्तक, संविधान निर्माता, करोड़ों महिलाओं, बेजुबान, बेबस, लाचार, दलित, पीड़ित, शोषित, पिछड़ों, अतिपिछड़ों में समता, समानता, न्याय व बंधुता की अलखजगाने वाले बाबा साहेब डा0 भीमराव अम्बेदकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 में महार परिवार महू, मध्य प्रदेश में हुआ| आप की प्रथम शिक्षा सतारा में हुई, परिवार के मुम्बई में बस जाने के कारण हाई स्कूल इलाफिन्स्टोन से किया, कुशाग्र बुद्धि के अम्बेदकर पर महाराजा बडौदा का वरदहस्त रहा| बी0 ए0 की शिक्षा पूर्ण करने के बाद 1913 में महाराजा ने उच्च शिक्षा के लिए इन्हें कोलम्बिया विश्वविद्यालय न्यूयार्क भेजा, जहाँ आपने मास्टर डिग्री प्राप्त किया| बचपन में जातिवाद, धर्मान्धता, पाखण्ड, अन्धविश्वास के कारण डा0 अम्बेदकर को अनेकों बार अपमान व प्रताड़ना झेलनी पड़ी| इन घटनाओं व सामाजिक असमानता, रूढ़िवाद का भी इनके जीवन पर विपरीत प्रभाव पड़ा| भगवान बुद्ध, सन्त कबीर, ज्योतिराव फूले व छत्रपति शाहूजी महाराज के क्रान्तिकारी विचारों से इनके मन में संघर्ष की ज्वाला भड़क उठी, डा0 अम्बेदकर ने संकल्प लिया कि भारत की 90 प्रतिशत जनता जिनमें महिलाऐं भी शामिल हैं, आज अशिक्षित, अन्धकार, अन्धविश्वास, जातिवाद, क्षेत्रवाद, संकीर्ण मानसिकता, पाखण्डवाद में बुरी तरह फंस गयी है, वह हर तरह के शोषण की शिकार है, इनके जीवन में नया सबेरा आये इन्हें इस भयावह अँधेरी सुरंग से निकालने के लिए मै अपना पूरा जीवन लगा दूंगा|
डा0 अम्बेडकर विश्व के विद्वानों में विलक्षण प्रतिभा के धनी रहे, आपने न केवल सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक गैर बराबरी के विरोध में अपनी आवाज उठायी बल्कि शिक्षा, धर्मान्धता के क्षेत्र में, मनुवादी, वर्चस्ववादी व्यवस्था के विरोध में भी कार्य किया| अपने अनुयायियों को “मूकनायक” समाचार पत्र निकाल कर समय-समय पर आधुनिक विचारों से अवगत कराते रहे, अपने लोगों में व्याख्यान के माध्यम से समय-समय पर “शिक्षित बनों, संगठित रहो, संघर्ष करो” का मूल मन्त्र दिया तथा कहा कि अपने जीवन में इन विचारों को आत्मसात करके ही आप लोग मुख्यधारा में आ सकते हैं| डा0 अम्बेदकर अनिवार्य सार्वभौमिक शिक्षा के पक्षधर थे उनका मत था कि शिक्षित समाज के उदय में सामाजिक बुराइयों का अन्त निश्चित है, डा0 अम्बेदकर ने शिक्षा को “शेरनी का दूध” कहा कि जिसे शिक्षा रूपी शेरनी का दूध मिला पीने को, उसमे नया उत्साह, नया तेज, नयी स्पूर्ति उत्पन्न हुई।
डा0 अम्बेडकर में करुणा, दया इतनी कूट-कूट कर भरी थी कि वे हर समय दलितों, पिछड़ों के उत्थान के बारे में सोचते थ। इसलिए सन 1923 में इन्होनें “बहिष्कृत हितकारी सभा” का गठन किया, इस संस्था के माध्यम से भी पिछड़े समाज में नया जागरण पैदा किया। महद के 1927 में महाराष्ट्र में जहाँ अस्पृश्य को चौधर झील में पानी नहीं पीने दिया जाता था, मार्च किया तथा दलितों को झील को सभी के लिए खुलवा दिया, प्रतिबंधित कुओं, तालाबों में पानी आम जन को पीने के लिए खुलवाने के लिए संघर्ष किया। 1930 में कलारम मन्दिर महाराष्ट्र नासिक की तरफ कूच किया तथा मन्दिर में प्रवेश के लिए संघर्ष किया, बड़ी जातियों में यह सन्देश उन्हें उद्वेलित करने के लिए काफी था।
डा0 अम्बेदकर ने अपने विचार 1931 में लिखे एक लेख के माध्यम से जन-जन के सामने रखा कि “मै ऐसे संविधान के बारे में प्रयत्न करूँगा जो भारत को सभी प्रकार की दासता और संरक्षणों से छुटकारा दिला दे”। मै ऐसे भारत के लिए कार्य करूँगा जिसमे गरीब से गरीब लोग महसूस करें कि यह देश उनका है, और इसके निर्माण में उनकी आवाज बहुत ही अहिमियत रखती है, वह ऐसा भारत होगा जहाँ लोगों की कोई उच्च या निम्न श्रेणी नहीं होगी और जहाँ सभी समुदाय पूरी समरसता और सौहार्द के साथ रहेंगें। यह है मेरे सपनों का भारत जिसके लिए मै जीवन पर्यन्त संघर्ष करूँगा। वे वास्तव में महान समाज सुधारक, मानवतावादी व उत्कृष्ट देश भक्त थे। वे महान अर्थशास्त्री, विधिवेत्ता व समाज विज्ञानी थे, उन्होंने संविधान की रचना करते हुए जिस प्रकार राजनीतिक लोकतंत्र को सामाजिक लोकतंत्र से जोड़ा वह असाधारण व डा0 अम्बेदकर की बिलक्षण प्रतिभा का परिचायक है।
डा0 अम्बेदकर ने संविधान का प्रारूप तैयार किया आप को भारतीय संविधान का निर्माता कहा जाता है। डा0 अम्बेदकर जातिप्रथा के घोर विरोधी रहे तथा इसे समाज का कोढ़ मानते थे, जाति प्रथा उन्मूलन के लिए आपने “एनीहीलेशन ऑफ़ कास्ट” के नाम से पुस्तक प्रकाशित किया, कई भाषाओँ में इस कृति का अनुवाद हुआ| इस कृति ने दल-दल में फंसे भारतीय समाज की ऑंखें खोल दी।
महिलाओं की व्यथा भी आपके मन में थी इनके उत्थान के लिए इन्हें शिक्षित करने की वकालत की आप विधवा विवाह के पक्षधर और बाल विवाह के विरोधी थे|महिलाओं को उच्च शिक्षा व समान अधिकार दिलाने की हमेशा कोशिश की तथा विश्व के दूसरे देशों का उदहारण देकर अपनी बात को मजबूती से रखा। महिलाओं को आर्थिक बराबरी के लिए पैतृक संपत्ति में हिस्सा दिलाने, अपनी मर्जी से शादी करने और अपनी मर्जी से विवाह विच्छेदन करने की वकालत की, स्वतंत्र भारत में आप कानून मन्त्री बने, राजनैतिक बराबरी के साथ सामाजिक समानता पर आपका ध्यान केन्द्रित था। मानव, मानव का शोषण करे इस व्यवस्था के आप घोर विरोधी थे। आर्थिक समानता के लिए स्वयं संघर्ष करके बराबरी में आने के लिए दलितों, पिछड़ों, समाज के कमजोर वर्गों तथा अल्पसंख्यकों को सन्देश दिया, आपका अस्पृश्यता का मुद्दा विश्व में बहस का मुद्दा बन गया, जो राजनैतिक बराबरी को जन्म दिया आप गाँधी जी के विचारों से पूर्ण सहमत नहीं थे फिर भी आप गाँधी जी का बहुत सम्मान करते थे।
हिन्दू धर्म में पाखण्डवाद, अन्धविश्वास, कपोल कल्पित कथाओं, मानसिक शोषण की व्यवस्था, बेगार, दासता, गुलामी के घोर विरोधी थे। इसी कारण आपने कहा कि मै हिन्दू पैदा हुआ हूँ लेकिन मै हिन्दू होकर मरना नहीं चाहता, लाखों लोगों के साथ आपने करुणा और दया के प्रतीक महात्मा बुद्ध के पद चिन्हों पर चलकर बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया। आजीवन बौद्ध धर्म के अनुयायी रहे। “डा0 अम्बेडकर ने कहा कि हिन्दू सभ्यता, आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों व आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्गों, मानवता को दबाये रखने व गुलाम बनाये रखने के लिए शैतान का षडयंत्र है, उन्होंने कहा कि वह कौन सी हिन्दू सभ्यता है कि मानव के स्पर्श मात्र से आदमी अपवित्र हो जाता है”।
6 दिसम्बर 1956 को आपका महा परिनिर्वाण हुआ, डा0 अम्बेदकर जी आपने शरीर छोड़ा, लेकिन आपका सामाजिक गैर बराबरी को समूल नष्ट करने का संघर्ष आपकी कृतियों, व्याख्यानों, संघर्षों द्वारा जब तक मानव समाज है याद किया जायेगा। विश्व में कोई भी उदहारण नहीं है जो इतना आभाव, शोषण में रहकर शिक्षा प्राप्त कर उच्च पदों पर रहकर उन वंचितों के लिए कार्य करे जो बेजुबान थे, उनके अधिकारों को धार दी जो अस्पृश्य थे, उनको बराबरी में लाये जो पिछड़े कमजोर वर्ग के थे, देश आपका ऋणी रहेगा, समाज आपका कर्ज उतार नहीं सकता आपको बार-बार नमन, वन्दन, पुष्पांजलि और श्रद्धांजलि।
डा0 अम्बेदकर जी के विचार व दृष्टिकोण की प्रसंशा करते हुए डा0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा है कि डा0 अम्बेदकर भारत के सच्चे देशभक्त थे| वे लोकतान्त्रिक प्रणाली की नई सामाजिक व्यवस्था स्थापित करना चाहते थे। इनकी विचार-धारा को ठीक-ठीक समझने व उसे व्यवहारिक रूप में लाने से समता, स्वतंत्रता, न्याय व बन्धुत्व पर आधारित समाज के निर्माण के साथ-साथ देश एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में अपने आप को स्थापित कर सकता है। डा0 अम्बेदकर की आज भी दार्शनिक विचार-धारा प्रासंगिक है, आजाद भारत में संविधान लागू होने के बाद भी हम अन्धविश्वास, रूढ़िवाद, पाखण्ड, जातिवाद, धर्मान्धता, भेदभाव, छुवाछूत व असमानता, शोषण व नफ़रत से मुक्त नहीं हो पाये हैं| हमें बाबा साहेब डा0 भीमराव अम्बेदकर के विचार व दर्शन को जन-जन तक फ़ैलाने का कार्य करना चाहिए, देश, समाज में सद्भाव, प्रेम, न्याय, बन्धुता के लिए हमें बाबा साहब के मार्ग दर्शन में चलने की आवश्यकता है, तभी भारत सुदृण होगा। आज कुछ प्रतिक्रियावादी शक्तिशाली ताक़तें संविधान तथा संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने पर लगी हुई है, विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका को भी प्रभावित कर लोकतन्त्र को कमजोर करना चाहती है, बाबा साहेब ड़ा0 अंबेदकर ने जन-जन के लिए उपयोगी संविधान की संरचना की, आज हमें ड़ा0 अंबेदकर को स्मरण करते हुए संविधान और लोकतन्त्र को बचाने का कार्य करना है, यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजली होगी।
संस्थापक/अध्यक्ष
लोक शिक्षण अभियान ट्रस्ट
मो0 9810311255
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