गाजियाबाद। सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में आयोजित महफ़िल ए बारादरी में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवयित्री ममता किरण ने कहा कि गाजियाबाद और बारादरी एक दूसरे के पर्यायवाची हो गए हैं। उन्होंने कहा कि चैनल्स से लेकर बड़े मंचों तक कविता कितने प्रतिशत शेष रह गई है यह हम सभी जानते हैं। ऐसे आयोजन ही कविता को जिंदा रखते हैं। क्योंकि कविता मोहब्बत की, इंसानियत की, सामाजिकता की बात करती है। नफ़रत की बात कविता नहीं करती। कविता वंचितों, शोषितों की बात करती हैजहां-जहां अन्याय है उसकी बात करती है। हम जिस माहौल में रहते हैं वहां संवेदना और कविता ही हमें सुरक्षित रखती है। कविता की जो मशाल बारादरी ने जला रखी हैं वह जलती रहनी चाहिए। उन्होंने दोहों के माध्यम से अपनी बात रखी। "बच्चों को पर क्या मिले छोड़ गए वो साथ, दीवारें ही बच गई जिन से कर लो बात"। "बच्चे परदेसी हुए, सूने घर संसार, इंटरनेट पर ही मने अब सारे त्यौहार"।
मैं ज़माने में दर-ब-दर न हुई" भी खूब सराहे गए।
कार्यक्रम का शुभारंभ ऊषा श्रीवास्तव 'राज' की सरस्वती वंदना से हुआ। कार्यक्रम का संचालन तरुणा मिश्रा ने किया। कार्यक्रम में मासूम गाजियाबादी, अनिमेष शर्मा, डॉ. ईश्वर सिंह तेवतिया, डॉ. वीना मित्तल, डॉ. तारा गुप्ता, नेहा वैद, अनिल वर्मा 'मीत', प्रमोद कुमार कुश 'तन्हा', दिलदार देहलवी, कीर्ति रतन, डॉ. अंजू सुमन साधक, माधवी शंकर, राजेश श्रीवास्तव, मृत्युंजय साधक, रिंकल शर्मा, आशीष मित्तल एवं संजीव शर्मा के गीत, गजल और दोहे भी भरपूर सराहे गए। इस अवसर पर आलोक यात्री, डॉ, स्मिता सिंह, अनुराग जैन, तेजवीर सिंह, वी. के. शेखर, सत्य नारायण शर्मा, अक्षयवरनाथ श्रीवास्तव, सुशील शर्मा, अंशुल अग्रवाल, रवि शंकर पाण्डेय, तिलक राज अरोड़ा, देवेन्द्र गर्ग, राकेश कुमार मिश्रा, शिल्पी जैन, रेनू अग्रवाल मेघराज सिंह, सुनीता रानी, प्रतीक वर्मा, टेक चंद, तन्नु पाल, साक्षी देशवाल, सिमरन, धर्मपाल सिंह, वंदना, गुरमीत चावला, हीरेंद्र कांत शर्मा व दीपा गर्ग सहित बड़ी संख्या में श्रोता उपस्थित थे।
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