गजियाबाद। सिद्धार्थ विहार योजना के लिए आवास विकास परिषद द्वारा सहकारी आवास समितियों से ली गई जमीन का मामला गहरा गया है। समितियों के सदस्यों ने मंगलवार को प्रेसवार्ता कर आवास विकास परिषद पर सहकारी समितियों का उत्पीड़न करने का आरोप लगाया।
समिति के सदस्य सतीश कुमार शर्मा ने कहा कि सिद्धार्थ विहार योजना के तहत सहकारी आवास समितियों ने 1990 से 1995 के बीच जमीनें खरीदी थी। 1998 में आवास विकास परिषद ने नोटिफिकेशन से जमीन का अधिग्रहण कर लिया था। आवास विकास ने कुल 703 एकड़ जमीन अधिग्रहित की थी। जिसमें 200 एकड़ जमीन किसानों से ली गई थी। 2014 तक आवास विकास परिषद ने समितियों को कुछ भी जमीन नहीं दी। 2014 में आवास विकास द्वारा समितियों द्वारा 80 प्रतिशत के बदले 45 प्रतिशत भूखंड देने का आॅफर दिया गया। बाद में आउट आॅफ कोर्ट सेंटलमेंट के तहत सहकारी समितियों ने स्वीकार कर लिया। समिति के सदस्यों का कहना है कि सभी समितियों को सिद्धार्थ विहार के सबसे अंतिम हिस्से में हिंडन नदी की ओर एक डंपिंग ग्राउंड के समीप जमीन दी गई। फिलहाल इस योजना के तहत मात्र एक समिति द्वारा प्लॉटिंग की जा रही है। कुछ समितियों ने स्वयं की ग्रुप हाउसिंग और कुछ ने डवलपर के साथ ज्वाइंट वेंचर कर अपने सदस्यों के लिए मकान बनाने का काम शुरू का दिया। प्रदेश के श्रम कल्याण विभाग के पूर्व अध्यक्ष सुनील भराला ने समितियों पर समायोजन शुल्क को लेकर 170 करोड़ रुपए का घोटाला करने का आरोप लगा दिया। समिति के सदस्य अरविंद सक्सेना ने कहा कि आउट आॅफ कोर्ट सेटलमेंट के तहत समायोजन शुल्क का जिक्र नहीं था। आवासीय समिति वेलफेयर एसोसिएशन को आजतक आवास विकास से समायोजन शुल्क के बारे में कोई पत्र नहीं मिला है। पूर्व दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री सुनील भराला ने किस मकसद से समितियों पर ये आरोप लगाया, यह समझ से परे है। समायोजन शुल्क को लेकर आवास विकास परिषद से समितियों की पिछले दो वर्षों से बातचीत चल रही है। उन्होंने कहा कि सुनील भराला ने 23 मई 2022 को शिकायत दर्ज कराई थी जिसके बाद एक जांच कमेटी बनाई गई। 26 जुलाई को कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दी जिसमें गड़बडी की बात को नकार दिया गया। इसके बाद मंडलायुक्त की अध्यक्षता में एक अन्य कमेटी बनी, जिसकी रिपोर्ट आनी बाकी है। लेकिन भराला रिपोर्ट पर अपनी राय दे रहे हैं।समिति के सचिव जगवीर चौधरी ने कहा कि सहकारी समितियों में लगभग तीन हजार सदस्य है। इनमें अधिकांश सीनियर सिटीजन्स है। अगर इसी तरह आर्थिक और मानसिक उत्पीड़न किया गया तो सहकारी समितियों के सदस्य आंदोलन करने को बाध्य होंगे। उन्होंने कहा कि आवास विकास परिषद ने सिद्धार्थ योजना के लिए सहकारी समितियों से जितनी जमीन ली थी। उनमें से सिर्फ 45 प्रतिशत जमीन ही समितियों को दी गई। इसके बाद भी समितियों से डेवलपमेंट चार्ज लिया गया। सहकारी समितियों की जमीन पर ही सड़क व पार्क बनाए गए। दो सहकारी समितियों-आदर्शनगर प्रगतिशील और उत्तर रेलवे दूरसंचार सहकारी समिति ने निजी कंपनी टीएंडटी के साथ ज्वाइंट वेंचर कर हाउसिंग प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया है।
कंपनी के बिजनेस डेवलपमेंट हेड निखिल शिशौदिया ने इस बात से इनकार किया है कि सहकारी समितियों ने अपनी जमीन कंपनी को बेची है। उन्होंने कहा कि एफएआर के तहत दो सहकारी समितियों के साथ सिर्फ ज्वाइंट वेंचर किया गया।
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