यह कार्यक्रम एक पैनल चर्चा के रूप में आयोजित किया गया, जिसमें देशभर से विख्यात पर्यावरणविद, वैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता और नदी संरक्षण विशेषज्ञों ने भाग लिया और हिंडन नदी के पुनर्जीवन, प्रदूषण नियंत्रण और सतत विकास आधारित समाधानों पर गंभीर और ठोस विचार विमर्श किया

📄 सभी विशेषज्ञों ने मिलकर तैयार किया “श्वेत पत्र” (White Paper)
कार्यक्रम की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि सभी उपस्थित वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों और सामाजिक संगठनों ने सामूहिक रूप से एक “श्वेत पत्र” (White Paper) तैयार किया।
इस दस्तावेज़ में हिंडन नदी की समस्याएं, कारण, समाधान, तकनीकी सुझाव और नीतिगत अनुशंसाएं विस्तार से शामिल की गई हैं।
यह श्वेत पत्र राज्य व केंद्र सरकार को सौंपा जाएगा, ताकि इसे आधिकारिक नदी संरक्षण योजना में सम्मिलित किया जा सके और हिंडन नदी को पुनर्जीवित करने की दिशा में ठोस नीति बनाई जा सके।
सत्येन्द्र सिंह, अध्यक्ष – उत्थान समिति ने कहा: “नदी कराह रही है।“
“यह श्वेत पत्र एक वैज्ञानिक, सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण से तैयार की गई नीति रूपरेखा है, जिसे सरकार तक पहुंचाकर हम हिंडन को बचाने की दिशा में ठोस कदम उठाना चाहते हैं।”
सत्येन्द्र सिंह, चेयरमैन उत्थान समिति ने कहा की हिण्डन को बचाने के लिए सभी संस्थाओं, सरकारी विभागों एवं जनता को मिलकर प्रयास करने होंगे तभी हिण्डन नदी को बचाया जा सकता है। हिण्डन सहारनपुर में जिस बरसनी झरने से निकलती है वहाँ का पानी भी हमने आज दिखाया की वहां का पानी इतना अधिक स्वच्छ है की उसमे मछलियाँ रह रही हैं और वहाँ रहने वाली वन गुर्जर आदिवासी जनजाति के लोग इसी जलधारा से अपना जीवन यापन कर रहे हैं वहीँ गाज़ियाबाद और नोएडा में इस नदी का पानी इतना अधिक दूषित है की इसमें बीओडी (बायो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड) जीरो होने की वजह से इसमें जलीय जीव जंतु भी नहीं हैं। क्योंकि यह उनके रहने लायक नहीं बची है। गंदे नालों एवं अतिक्रमण ने नदी की यह हालत कर दी है की नदी कराह रही। कार्यक्रम की शुरुआत नुक्कड़ नाटक “नदियों को बचाएं” से की गई।
कार्यक्रम का शुभारंभ एक सशक्त नुक्कड़ नाटक से हुआ, जिसकी प्रस्तुति ने श्रोताओं को झकझोर कर रख दिया।
इस नाटक में नदी को एक जीवित प्राणी के रूप में प्रस्तुत किया गया, जो वर्षों से उद्योगों के अपशिष्ट, घरेलू गंदगी और नीतिगत लापरवाही का शिकार रही है। कलाकारों ने जनसामान्य को यह संदेश दिया कि नदियों को बचाने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की नहीं, बल्कि हम सबकी है।
ड्रोन सर्वेक्षण: पहली बार हिंडन की असली तस्वीर सामने
उत्थान समिति और Centre for Water Peace के संयुक्त प्रयासों से किया गया ड्रोन सर्वेक्षण कार्यक्रम का प्रमुख आकर्षण रहा।
इस सर्वेक्षण के माध्यम से हिंडन नदी के किनारों पर फैले बिना ट्रीटमेंट वाले नालों, औद्योगिक अपशिष्टों के प्रवाह और अतिक्रमण की वास्तविक स्थिति को दर्शाया गया।
सत्येन्द्र सिंह, अध्यक्ष, उत्थान समिति ने बताया, ड्रोन सर्वे से हमें एक दिशा मिली है तथा यह भी साफ़ हुआ है की हमें किस दिशा में और कैसे कार्य करना होगा ताकि हिण्डन को बचाया जा सके।
“ड्रोन तकनीक के माध्यम से हमें यह पता चला कि नदी किनारे दर्जनों ऐसे नाले हैं जो सीधे गंदा पानी बिना किसी शोधन के हिंडन में गिरा रहे हैं। यह जानकारी हमें कार्रवाई करने के लिए ठोस आधार देती है।”
प्रमुख वक्ताओं के विस्तृत वक्तव्यो ने अपने अपने विचार वयक्त किए जिनमें
पंकज चतुर्वेदी विशेषज्ञ, इंडिया क्लाइमेट चेंज
ने नदी पारिस्थितिकी तंत्र के बारे मे बताया कि “हिंडन सिर्फ एक जलधारा नहीं, एक संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र है। इसे पुनर्जीवित करने के लिए हमें इसके जीव-जंतुओं, वनस्पतियों और जलचक्र को समझकर समग्र दृष्टिकोण अपनाना होगा।”
🔹 संजय कश्यप सीएमडी, सेंटर फॉर वाटर पीस ने संस्कृति और लोग पर कहा कि “नदियाँ भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं। जब तक लोग नदियों को केवल जल स्रोत समझते रहेंगे, तब तक संरक्षण अधूरा रहेगा। सांस्कृतिक पुनर्जागरण आवश्यक है।”
🔹 डॉ. अनिल गौतम वरिष्ठ वैज्ञानिक, पीपल साइंस इंस्टीट्यूट ने क्षरण के कारण और प्रभाव पर चर्चा करते हुए कहा कि “बिना योजना के शहरी विस्तार, कृषि में रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक प्रयोग और औद्योगिक गंदगी ने मिलकर हिंडन को बुरी तरह क्षतिग्रस्त किया है। हमें स्थानीय स्तर से समाधान खोजना होगा।”
🔹 डॉ. एम. फैसल ने यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क
पारिस्थितिक पुनर्स्थापन की विधियाँ पर कहा कि “स्थानीय पौधों और जैव विविधता को पुनर्स्थापित करने से नदी का प्राकृतिक प्रवाह और जीवनचक्र वापस लाया जा सकता है। पारिस्थितिकी के साथ तालमेल आवश्यक है।”
🔹 डॉ. विवेक कुमार – CRDT, IIT दिल्ली ने प्रदूषण नियंत्रण और अपशिष्ट प्रबंधन पर चर्चा करते हुए कहा कि “गाजियाबाद व आसपास के इलाकों से निकलने वाला अपशिष्ट बिना ट्रीटमेंट के नदी में गिर रहा है। जब तक हम आधुनिक अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली लागू नहीं करेंगे, तब तक कोई समाधान संभव नहीं है।”
केसर सिंह ने यमुना वॉटरकीपर ने
नीति और शासन के संबंध मे बताया कि “हमें शासन प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही लानी होगी। केवल नीति बनाना काफी नहीं, उसके क्रियान्वयन की निगरानी जरूरी है।”
🔹 श्रीमती वीणा खंडूरी – इंडिया वाटर पार्टनरशिप ने हितधारकों की भागीदारी पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि “हर वर्ग – सरकार, उद्योग, समाज और युवा – को इस अभियान में भागीदार बनाना जरूरी है। सामूहिक प्रयास ही स्थायी परिवर्तन ला सकता है।”
🔹 डॉ. उमर सैफ – पर्यावरण योजनाकार, जीएनएन
ने नवाचार और GIS तकनीक पर बताया कि “GIS और रिमोट सेंसिंग जैसे तकनीकी उपकरण नदी की निगरानी में बेहद मददगार हैं। हमें डेटा आधारित निर्णय लेने की दिशा में आगे बढ़ना होगा।”
कार्यक्रम के अंत में सभी वक्ताओं को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया।
सभी अतिथियों ने इस आयोजन को “हिंडन नदी के लिए एक नई शुरुआत” बताया और इसे एक जनांदोलन बनाने की अपील की।
“अगर हम नदियों को बचाएंगे, तो नदियाँ हमें बचाएंगी।” कार्यक्रम में मुख्य रूप से अरुण त्यागी , नरेंद्र गुप्ता , महेश चौधरी , अवधेश कटियार , विनीत गोयल , मनोज अग्रवाल , अभिषेक सिंघल , मनोज मिश्रा , अंशुमान सिंह , प्रतीक माथुर , रीना सिंह , जितेंद्र सिंह, बबीता सिंह , लवलीन उपस्थित थे ।